मेरी दिल्लगी
मेरी दिल्लगी देखो आज मेरे काम आ गई |
मेरे नाम उनकी कई हसीन शाम आ गई ||1||
पाना तेरा इत्तेफाक ना था कोई भी मेरा |
यह मेरी ही दुआ है जो मेरे काम आ गई ||2||
लूट कर लोगों को बनाते हो मालो-मकाँ |
झूठी है यह वसीयत जो तेरे नाम आ गई ||3||
मेहमाँ तो बहुत थे महिफलें जाँ ना था कोई |
एक आमद से तेरी महफिले शाम छा गई ||4||
अच्छा किया तुमने उस टोकरी को खरीद कर |
बेचने वाली देखो मेहनत के सही दाम पा गई ||5||
मेहनत बड़ी की है उसने मंजिल को पाने में |
ऐसे ही नहीं हस्ती उसकी यह नाम पा गई ||6||
मजहब की नजर में कोई छोटा बड़ा ना होता है |
झूठे बेर खिलाकर साबुरी देखो राम पा गई ||7||
मिटती नहीं है हस्ती दीवानों की दुनिया से |
मीरा की मोहब्बत देखो अपना श्याम पा गई ||8||
भूल ना पाओगे तुम शहादत इन शहीदों की |
हस्ती भगत ,आजाद की वह मुकाम पा गई ||9||
ताज मोहम्मद
लखनऊ