मेरी-तेरी पाती
*कुछ प्रश्न गुदगुदाते हैं,
अच्छा लगता है।*
जब उन प्रश्नों के उत्तर जब पा जाओगे….
तो कल्पना करो, कैसा लगेगा।
*जब आप मुस्कराते हैं,
अच्छा लगता है।*
मेरे मुस्कराने की,
न तो कोई वजह है…
और न ही इसमें कोई खूबी।
जब तुम मुस्कराओगे…
तो क्या बात होगी।
वो हसीन नज़ारा नहीं जिनको मयस्सर।
नज़ारे के हसीन होने के कोई मायने नहीं…
जब तक…
हसीन दिल….
और दिल की गहराइयों में,
कैद आत्मा….
तक बाग-बाग न हो जाये।
*तस्वीर बनाते हैं,
अच्छा लगता है।*
तस्वीर बनाने से भी कभी तस्वीर बनी है….
तस्वीर को देख, तस्वीर होना पड़ता है।
जब तुम सामने आते हो, अच्छा लगता है,
और तस्वीर तो, खुद-ब-खुद ही बन जाती है।
*अब नहीं हसीन लगते हैं
ख्वाब जन्नत के।*
ख्वाबों के बहकावे में
आये ही क्यूँ …
हकीकत को, जो आजमा लेते तो मायूस न होते।
और जन्नत का दीदार,
क्या कभी किसी ने किया है..
हमारा साथ निभाते,
तो यहीं जन्नत होती।
*आपके घर आते हैं,
अच्छा लगता है।*
मेरा घर भी कोई घर है…!
ईंट पत्थर से बनी इमारत,
घर हो भी कैसे सकती है?
आप आते हो…..
तो वो घर सा हो जाता है।
इनायत है आपकी….
कुछ पल के लिए ही सही,
घर तो कहलाता है।