मेरी तितली कितनी सयानी ?
“मुझ पंछियों को
मेरी ही भाषा में रहने दो….
….मैं आज़ादी
खोना नहीं चाहती ‘दी,
रंग-बिरंगी पंख है मेरी,
यही मेरी साक्षरता है….
और मेरी चहचहाना ही
मेरी एम.ए.,
पी-एच.डी. डिग्री है….”
फिर वो ‘फुर्र’ उड़
पेड़ की
उसी डाल पर बैठ गयी
और मेरी मुख से
अनायास निकली–
‘मेरी तितली, कितनी सयानी ?’