मेरी तरह वो भी बिखरता होगा
आया निकल मैं गाँव से दूर,
पता कोई मेरा पूछता होगा।
बात मन की वो कह न सके,
बस निगाहों से ढूँढता होगा।
दूर उससे हो आँखें हैं सजल,
मेरी तरह ही सिसकता होगा।
ख़्याल मेरा साथ अपने लिए,
पगडंडियों पर चलता होगा।
लगाया मिलकर हमने गुलाब ,
अब भी उसको सींचता होगा।
बरसती सावन की उन बूँदों में,
अब भी तो वो भीगता होगा।
छोड़ा मैंने क्यूँ उन गलियों को,
ख़ुद से ही वो तो पूछता होगा।
मेरी मजबूरी को कैसे जाने वो,
मुझको बेवफ़ा समझता होगा।
दूर होकर मैं जैसा बिखरा हूँ,
मेरी तरह वो भी बिखरता होगा।