मेरी डायरी-4 राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
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मेरी प्रिय डायरी (भाग-4) (पाप या पुण्य)
-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, टीकमगढ़ (मप्र)
दिनांक 27-5-2021 समय रात 9:30
मेरी प्रिय डायरी,
आत्मिक स्नेह
कभी कभी हमें पता नहीं नहीं चलता कि हम पुण्य कमा रहे है कि पाप। आपको स्वयं की एक घटना बता रहा हूं फिर आप निर्णय करना कि मैंने क्या कमाया पुण्य या पाप।
हुआ यूं कि मैं अपने बगीचे में गुलाब के गमले में चाय बनाने के बाद जो चाय पत्ती बचती है उसे धूप में सुखा कर फिर गमलों में डाल देता हूं यह गुलाब के लिए एक बेहतरीन खाद है जो कि हमें घर में ही मुफ्त में मिल जाती है। तो इस बार अभी गर्मियों में मैंने अपने छत पर जीना के नीचे धूप से बचाने के लिए पौधौं को रख दिया तब एक दिन मैंने कुछ चाय पत्ती गुलाब के गमले में डाल दी और फिर पानी डाल दिया।
शाम को जब मैं छत पर घूमने गया तो देखा कि उस गमले में मिट्टी में कुछ चींटियां दिखी जो संभवतः उस डली हुई चाय पत्ती को खा रही थी, जो कि चाय बनाते समय शक्कर डालने से उसमें मीठा पन अभी भी रहा होगा।
यह देखकर मुझे खुशी हुई कि चलो इन चींटियों को खिलाने का कुछ पुण्य तो मिलेगा ही। यह सोचकर आत्मिक प्रसन्नता हुई। दो तीन दिनों में इन चींटियों की संख्या बहुत बढ़ गयी।
एक दिन सुबह जब मैं पौधों को पानी देने के लिए आया तो देखा कि गौरैया चिड़िया गमले में बैठकर मजे से चींटियां खा रही थी। ये देखकर मुझे बहुत दुख हुआ। दिल ने कहा इन चींटियों की हत्या का तो तुम्हारे सिर आयेगा। तुम्हीं ने तो गमले में चाय पत्ती डाली थी नहीं डालते तो चींटियां भी नहीं आती।
अब मैं यह निर्णय नहीं कर पा रहा हूं कि मैंने पुण्य कमाया है कि पाप। मैंने ठीक किया या गलत।
अब आप सुधी पाठक ही बताये मैंने पाप अधिक कमाया कि पुण्य।
आपके विचार मुझे संबल देगे। आगे दिशा भी देंगे इसलिए कृपया अपने विचार और मत अवश्य कमेंट्स बाक्स में जरूर लिखिएगा ।
धन्यवाद बस आज इतना ही शेष फिर..
शुभरात्रि, स्वस्थ रहे, मस्त रहे।
आपका अपना-
-राजीव नामदेव _राना लिधौरी’
संपादक-‘आकांक्षा’ पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
अध्यक्ष वनमाली सृजन केन्द्र टीकमगढ़
नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी,टीकमगढ़
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