मेरी जेब में….. (लघु कथा)
मेरी जेब में…..
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बचपन में शम्भू चाचा का बेटा दीपू , मेरा अजीज दोस्त था । एक दिन मैं दीपू को ढूंढते-ढूंढते उसके घर पहुँचा ही था कि शम्भू चाचा दिखाई पड़ गए । मैंने शम्भू चाचा से पूछा- चाचा जी ! दीपू कहाँ है ?
शम्भू चाचा शायद किसी जरूरी काम में व्यस्त थे उन्होने मात्र हाथ के इशारे से ही बताया कि उन्हें नहीं पता । मैं भी कहाँ मानने वाला था मैंने दुबारा कुछ ज्यादा ही ऊँची आवाज में पूछ लिया – दीपू कहाँ है चाचा जी !
शायद दीपू के बारे में मेरे दुबारा पूछने से उनके कार्य में कुछ व्यवधान हुआ हो, उन्होने मुझसे भी ऊंची आवाज में भौहें चढ़ाकर कहा- “मेरी जेब में !”
मेरे जिस मुँह ऊंची आवाज निकली थी, उस पर अब उतना ही बड़ा ताला लटक गया था । अब मेरे पास पूछने के लिए कुछ भी नहीं बचा था ।
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हरीश लोहुमी , लखनऊ (उ॰प्र॰)
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