Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 Jan 2020 · 6 min read

मेरी जीवन यात्रा

जीवन में प्रथम पदार्पण पर मेरी दुनिया थी मेरी मां की गोद और उसका आंचल । शैशवावस्था में उसने मुझे हाथ पकड़कर चलना सिखाया प्रकृति का दर्शन एवं उसे अनुभव करने का अवसर दिया। उसने मुझे स्वच्छता तथा स्वावलंबन का ज्ञान दिया। और सहअस्तित्व एवं सहकार की भावना का विकास किया। उसने मुझमे अच्छे बुरे की समझ और निर्भीक रहकर जीने का मंत्र दिया। धीरे धीरे उसके मार्गदर्शन पर चलते हुए मैंने किशोरावस्था में पदार्पण किया। तब मुझे अपने पिता का मार्गदर्शन एवं संस्कार की शिक्षा मिली। जिसमें अच्छे व्यवहार की शिक्षा एवं बड़े बूढ़ों का आदर एवं नारी सम्मान की शिक्षा का समावेश था। उन्होने युवा जगत में आधुनिकता के नाम पर फैली हुई गलत परंपराओं और कुरीतियों से मुझे अवगत कराया।
मेरे पिता ने मुझे कमल की तरह कीचड़ में रहकर भी अपने स्वतंत्र अस्तित्व एवं व्यक्तित्व की रक्षा के महत्वपूर्ण गुर प्रदान किए।
उन्होंने मुझे अपने लक्ष्य को सर्वोपरि रखकरअविचलित भाव से संकटों से जूझ कर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी।
उन्होंने मुझे धनोपार्जन को जीवन निर्वाह का साधन मानने और लक्ष्य ना बनाने का संदेश दिया।
और उन्होंने परोपकार में पात्र एवं कुपात्र मे अंतर स्पष्ट करने की प्रज्ञा शक्ति के विकास में मेरी सहायता की।
इस प्रकार मेरे स्वतंत्र अस्तित्व के विकास में मेरे माता पिता पिता का बड़ा योगदान रहा।
इस तरह मैं शनैः शनैः जीवन पथ पर आगे बढ़ता रहा। मैंने अपनी उच्चतर माध्यमिक शिक्षा के पश्चात कृषि महाविद्यालय में प्रवेश लेकर कृषि विज्ञान मैं स्नातक उपाधि प्राप्त की। विश्वविद्यालय में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने पर मुझे स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया।इसके पश्चात मैंने बैंक अधिकारी नियुक्ति परीक्षा उत्तीर्ण कर बैंक मैं नौकरी प्राप्त की। बैंक पर विभिन्न पदों में कार्यरत रहकर अपने कर्तव्य का पालन किया।
जीवन के इस पड़ाव पर मुझे जीवनसाथी की आवश्यकता महसूस होने लगी। तब मैंने एक युवती जिसने अपनी सुंदरता से अधिक अपने व्यक्तित्व से मुझे प्रभावित किया को जीवनसाथी बनाने का निश्चय कर विवाह बंधन में बंध गया।
विवाह बंधन में बंधने के पश्चात मैंने यह अनुभव किया कि मुझ पर जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ गया है।
विवाह के बाद मैंने महसूस किया कि विवाह केवल दो व्यक्तियों का बंधन नहीं है यह दो परिवारों का मिलन है ।
जिसमें सामंजस्य स्थापित करने के जिम्मेवारी विवाहित व्यक्तियों की बढ़ जाती है। अतः मेरी अहम भूमिका सामंजस्य स्थापित करने सौहार्द्र का वातावरण बनाने की दिशा मे बढ़ गई है।
ईश्वर की कृपा से मुझे एक सरल स्वभाव युक्त जीवनसंगिनी मिल गई थी।
सबसे महत्वपूर्ण बात उसके चरित्र में थी कि वह कभी झूठ नहीं बोलती थी ।और कभी झूठ का समर्थन भी नहीं करती थी।
जिसके फलस्वरूप उसको कभी-कभी बुराई को झेलना पड़ता था।
वह गृह कार्य में दक्ष थी।
उसने उच्चतर माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की थी। उसमें पढ़ने की बहुत लगन थी।परंतु छोटी आयु में में शादी होने की वजह से वह आगे पढ़ाई जारी रखने से से वंचित रही।
मेरा परिवार एक बड़ा परिवार था मेरे दो बड़े भाई और तीन बड़ी बहने थी। मैं घर में सबसे छोटा सदस्य था । बहनेंं शादी के बाद अपनी अपनी ससुराल चली गई मेरे दोनों बड़े भाइयों की शादी हो गई और बहुएं घर पर आ गईं ।
सबसे छोटी बहू होने की होने की वजह से मेरी पत्नी को सभी के आदेश का पालन करना पड़ता था।
परंतु मेरी मां ने ने सभी बहुओं पर अपनी लगाम कस रखी थी अतः वे चाह कर भी छोटी बहू का शोषण नहीं कर पाती थीं।
मेरी मां में विलक्षण प्रज्ञा शक्ति थी। जिससे वो भली-भांति परिस्थितियों को समझकर निर्णय लेती थी ।
और विवाद की स्थिति निर्मित नहीं होने देती थी। मेरी पत्नी की लगन को देखकर मेरी मां ने उसे आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। और उसे सलाह दी कि वह पत्राचार कार्यक्रम के माध्यम से अपनी पढ़ाई जारी रख सकती है। इस प्रकार मेरी पत्नी ने पत्राचार माध्यम से बीए की परीक्षा उत्तीर्ण की उसके पश्चात उसने पत्राचार माध्यम से एम ए राजनीति शास्त्र में और B.Ed परीक्षा उत्तीर्ण कर अपने सपनों को साकार किया।
मेरी शादी के 3 वर्ष पश्चात मुझे पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई उसके 2 साल पश्चात मुझे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ।
बच्चों के लालन-पालन और पोषण मे मेरी मां का काफी योगदान रहा जिसके कारण मेरी पत्नी ने बिना किसी व्यवधान के अपना ध्यान अध्ययन में केंद्रित रख कर अपने उद्देश्य को सफल बनाया।
मेरे पुत्र जन्म के दो वर्ष पश्चात् मेरी पत्नी ने एक और बेटी को जन्म दिया जिसको मैने उसकी अल्पायु में मानसिक ज्वर से पीड़ित होने पर खो दिया। इस अवसाद का मेरी पत्नी पर बहुत असर हुआ और वह अक्सर चुप रहने लगी और किसी से अधिक बात नही करती थी। मैं बैक अधिकारी की नौकरी कर रहा था। मेरी मां ने मुझे स्थानांतरण लेकर किसी दूसरे शहर मे जाकर रहने की सलाह दी जिससे स्थान परिवर्तन एवं नये लोगों से मिलने से उसके अवसाद मे कमी आकर वह सामान्य स्थिती मे आ सके। तदुनसार मैने अपना स्थानांतरण दूसरे शहर करवा लिया और एक संभ्रान्त मोहल्ले मे किराये का मकान लेकर अपनी गृहस्थी स्थापित कर ली।
बच्चों का दाखिला भी एक अच्छे स्कूल मे करवा दिया। धीरे धीरे जगह बदलने से और नए मित्र बनने से मेरी पत्नी की मनः स्थिति मे सुधार होने लगा और समय बीतते वह सामान्य स्थिति मे लौट आई। उसने पास के स्कूल में शिक्षिका के पद के लिए आवेदन किया और वह चयनित होकर स्कूल में शिक्षिका हो गई। यह उसके द्वारा लिया एक अच्छा निर्णय था जो उसको व्यस्त रखते हुए उसे अपनी अवसाद पूर्ण यादों को भुलाने में सहायक सिद्ध हुआ। मुझे अपने बैंक के कार्य में अधिकतर व्यस्त रहने के कारण अपने बच्चों की प्रगति के विषय में समुचित ध्यान देने के लिए समय का अभाव रहता था। परंतु मेरी पत्नी हमेशा अपने बच्चों की प्रगति के लिए जागरूक रहती थी। जिसके फलस्वरूप मेरे बच्चों ने अच्छे नंबरों से अपनी परीक्षा पास की। और अपनी कक्षा में अग्रणी रहे । जिसका श्रेय मेरी पत्नी द्वारा इस दिशा में किए अथक परिश्रम को जाता है ।
मेरी पत्नी द्वारा अपने बच्चों के भविष्य एवं शिक्षा हेतु किए प्रयत्न के फलस्वरूप मेरी पुत्री ने बी.एअंग्रेजी साहित्य एवं
एम .ए Mass Communication उपाधियों को प्राप्त किया। बी .ए उपाधि में उसने विश्वविद्यालय प्रवीणता सूची में स्थान प्राप्त किया।
मेरे पुत्र ने आईआईटी प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर आईआईटी रुड़की से बीटेक उपाधि प्राप्त की ।और उसने सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक प्राप्त किया। उसके पश्चात उसने आई .आई एम बेंगलुरु से व्यवसाय प्रबंधन मे स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की।
मेरी पुत्री का विवाह बेंगलुरु स्थित वर जो मान्यता प्राप्त भवन निर्माण कंपनी मे प्रमुख अधिकारी है से संपन्न हुआ ।उसे एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।
मेरे पुत्र ने 1 वर्ष नौकरी करने के पश्चात व्यवसाय करने का निर्णय लिया और कई व्यवसायों में हाथ आजमाने एवं व्यवसाय के उतार-चढ़ाव के अनुभवों के बाद शिक्षा क्षेत्र में प्रवेश किया। संप्रति प्रमुख संचालक व्यवसाय प्रबंधन संस्थान बेंगलुरु।
मैंने बैंक में विभिन्न पदों पर रहकर अपनी स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति लेने के पश्चात विभिन्न कंपनियों में प्रमुख संचालक कार्यरत रहकर अपने कर्तव्य का निर्वाह किया। संप्रति संचालक व्यवसाय प्रबंधन संस्थान बेंगलुरु। मेरी पत्नी ने शिक्षण क्षेत्र में विभिन्न पदों पर रहकर अवकाश ग्रहण किया ।
मुझे बचपन से ही खेलकूद और संगीत में रुचि रही है । मेरी मां ने विधिवत संगीत कि शिक्षा पाई और उन्होंने वाद्य संगीत एवं गायन में संगीत विशारद एवं संगीत प्रवीण की उपाधियां प्राप्त की। मैं बचपन से ही संगीत के वातावरण मे पला और बड़ा हुआ हूँ।
मेरे घर के प्रत्येक सदस्य संगीत की किसी ने किसी विधा में पारंगत है। सबसे बड़े भाई जो पेशे से इंजीनियर हैं साथ ही साथ एक कुशल सितार वादक आकाशवाणी मान्यता प्राप्त कलाकार है विभिन्न आयोजनों में अपने सितार वादन प्रस्तुति करते रहते हैं।
मैने निकट में अपने मँझले भाई जो बैंक सेवानिवृत्त अधिकारी थे एक लंबी बीमारी के चलते खो दिया है। निकट में मुझसे बड़ी बहन जो जयपुर में एक विद्यालय संचालित करती थी कैंसर के कराल गाल में ग्रस्त हो गई।
अपनों के खोने का दुख तो सालता है।परन्तु नियति के चक्र से कौन बच सकता है। यह सोचकर समझौता करना पड़ता है। वक्त भी धीरे-धीरे घाव को भरने लगता है और हमें सब कुछ भुला कर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता रहता है।
मेरे जीवन सफर के कुछ खट्टे कुछ मीठे अनुभव है कुछ कड़वे कुछ तीखे अनुभव है। कहीं कुछ पाने की खुशी कहीं कुछ खोने का गम, कुछ सम्मान के पल कुछ अपमान के क्षण, कुछ आसक्ति के पल कुछ विरक्ति के क्षण, कुछ क्रोध के पल कुछ पश्चाताप के क्षण ,कुछ मोह के पल कुछ वितृष्णा के क्षण, कुछ मिलन के क्षण कुछ विरह के पल। इन सभी पलों का समावेश हमारे जीवन चक्र में रहता है ।जिस से अछूता कोई भी जीवन नहीं है।
आज दिनांक 11जनवरी 2020 मेरे जन्मदिवस पर अपनी जीवन यात्रा अनुभव प्रस्तुत करता हूँ ।
मैने आज अपने जीवन के 67 वसंत पूर्ण किये हैं।

Language: Hindi
Tag: लेख
4 Likes · 10 Comments · 328 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Shyam Sundar Subramanian
View all
You may also like:
ऐ ज़िन्दगी!
ऐ ज़िन्दगी!
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
नसीहत
नसीहत
Slok maurya "umang"
आकाश दीप - (6 of 25 )
आकाश दीप - (6 of 25 )
Kshma Urmila
रानी मर्दानी
रानी मर्दानी
Dr.Pratibha Prakash
हर  तरफ  बेरोजगारी के  बहुत किस्से  मिले
हर तरफ बेरोजगारी के बहुत किस्से मिले
Jyoti Shrivastava(ज्योटी श्रीवास्तव)
2786. *पूर्णिका*
2786. *पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
राज्यतिलक तैयारी
राज्यतिलक तैयारी
Neeraj Mishra " नीर "
''बिल्ली के जबड़े से छिछडे छीनना भी कोई कम पराक्रम की बात नही
''बिल्ली के जबड़े से छिछडे छीनना भी कोई कम पराक्रम की बात नही
*प्रणय*
पहचान ही क्या
पहचान ही क्या
Swami Ganganiya
गम इतने दिए जिंदगी ने
गम इतने दिए जिंदगी ने
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
हृदय तूलिका
हृदय तूलिका
Kumud Srivastava
इन राहों में सफर करते है, यादों के शिकारे।
इन राहों में सफर करते है, यादों के शिकारे।
Manisha Manjari
!! चहक़ सको तो !!
!! चहक़ सको तो !!
Chunnu Lal Gupta
यूँ तो इस पूरी क़ायनात मे यकीनन माँ जैसा कोई किरदार नहीं हो
यूँ तो इस पूरी क़ायनात मे यकीनन माँ जैसा कोई किरदार नहीं हो
पूर्वार्थ
"जीवन का संघर्ष"
Dr. Kishan tandon kranti
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
Piyush Goel
धीरे धीरे उन यादों को,
धीरे धीरे उन यादों को,
Vivek Pandey
दरख़्त-ए-जिगर में इक आशियाना रक्खा है,
दरख़्त-ए-जिगर में इक आशियाना रक्खा है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
शिव शंभू भोला भंडारी !
शिव शंभू भोला भंडारी !
Bodhisatva kastooriya
प्रदूषण रुपी खर-दूषण
प्रदूषण रुपी खर-दूषण
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
ऐ .. ऐ .. ऐ कविता
ऐ .. ऐ .. ऐ कविता
नेताम आर सी
मरने से पहले ख्वाहिश जो पूछे कोई
मरने से पहले ख्वाहिश जो पूछे कोई
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
सुबह होने को है साहब - सोने का टाइम हो रहा है
सुबह होने को है साहब - सोने का टाइम हो रहा है
Atul "Krishn"
*स्वजन जो आज भी रूठे हैं, उनसे मेल हो जाए (मुक्तक)*
*स्वजन जो आज भी रूठे हैं, उनसे मेल हो जाए (मुक्तक)*
Ravi Prakash
पिता की याद।
पिता की याद।
Kuldeep mishra (KD)
सीख
सीख
Sanjay ' शून्य'
इश्क का बाजार
इश्क का बाजार
Suraj Mehra
जब मायके से जाती हैं परदेश बेटियाँ
जब मायके से जाती हैं परदेश बेटियाँ
Dr Archana Gupta
खुद को जानने में और दूसरों को समझने में मेरी खूबसूरत जीवन मे
खुद को जानने में और दूसरों को समझने में मेरी खूबसूरत जीवन मे
Ranjeet kumar patre
ॐ नमः शिवाय…..सावन की शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज महोत्सव के
ॐ नमः शिवाय…..सावन की शुक्ल पक्ष की तृतीया को तीज महोत्सव के
Shashi kala vyas
Loading...