मेरी जीत का जश्न
मेरी जीत का जश्न
“ उनके सपनो की उड़ानों ने जो पंख फड़फड़ाये दिल मेरा भी मचल उठा मैं भी आकाश में उड़ जाऊ तोड़ सारे दुःख और असफलता की बेड़ियों को ऊचें आकाश में अपनी सफलता और जीत का जश्न मनाऊँ”
सपने सजाना और उनको पूरा करना सबका हक़ है। कुछ लोग जिंदगी अपने लिए जीते है और अधिकांश लोग दूसरो के लिए।
हम खुद के साध्य है या दूसरो के साधन, जिंदगी ने यह परिभाषा शायद बचपन में ही औझल को समझा दी थी।
“लड़की” शब्द, यह शब्द कभी वरदान रहा ही नहीं , आज भी कोई माँ स्वयं स्त्री होते हुए भी लड़की नहीं माँगती। कोई आशीर्वाद “ पुत्रीवती हो ” बना ही नहीं।
औझल का जन्म जिस परिवेश में हुआ वहां वह सिर्फ साधन के रूप में सबका ध्यान रखती , सहयोग करती और अपनी शिक्षा को बचे समय में पूरा करती।
शिक्षा का सफ़र जिंदगी की मुसीबतों में एक जिद्द के साथ चलता रहा। हर साल एक बड़ी लड़ाई अपनी शिक्षा के क्रम को अनवरत रखने के लिए लड़नी पड़ी। माता पिता शायद ये समझ ना पाये की लड़की के सपने शिक्षा के लिए क्या होते है।
फिर शादी रुढिग्रस्थ ससुराल वही साधन वाली जिंदगी देखी।
“ सपनो की हिम्मत ने सोने ना दिया
जिसने रोने ना दिया
टूटे कई बार फिर जुड़ गए
बिखरने ना दिया “
समय बदला , लोग बदले , कुछ बेड़ियाँ ढीली हुई और कुछ टूट गयी।
आज जिंदगी के इस मुकाम पर औझल जिसके गुरु, वक्त, हालत, परिस्थितियां रही , आज खुद गुरु है , सफल है सुखी है , जिंदगी के लिए ललक है , सपनो को सहारा देने की ललक है।
स्त्री कभी कमजोर नहीं थी ना कभी हो सकती है। शक्ति नारी को कहा जाता है – यह सत्य शाश्वत है! यह औझल के रूप में जाना।
“ देखकर कुछ गिरते लोगो को, निराश ना होना
घेरेगा अँधेरा तुम्हे, गुम न होना
ये हिम्मत ये मेहनत
जीत की निशानी है
इन्हें जुदा न खुदसे होने देना। “
औझल (अंजू)