“मेरी जिंदगी”
मेरी जिंदगी कटीली झाडियो की उलझन बन गयी है।
मानो डलियो की बीच फूलो की अनबन बन गयी है।
तन्हा कटे या तेरे संग जिंदगी सोचता रहता हूँ।
कोई न मिला मुसाकिर तो खुद एक प्रश्न बन गयी है।
जिंदगी की अंधियारी दुनिया में कभी तो उदित होगा सूर्य।
अधूरी तम्मानाओ की बस एक स्वप्न बन गयी है।
दुआँ की दीवार ही मजबूत अब आती नजर मुझे।
इस इंतजार में बस एक उम्मीद का दामन बन गयी है।
सुख सुख दुख का अनुभव समय चक्र गति है प्रशांत।
प्रेम बांटते बांटते मेरी जिंदगी आखिर प्रेम धन बन गई है
प्रशांत शर्मा” सरल”
नरसिंहपुर