मेरी जान बस रही तेरे गाल के तिल में
निगाहें ढूंढ़ती तुमको हर एक महफ़िल में,
तेरी सूरत सलोनी बस गई है मेरे इस दिल में,
बहुत सोचा बहुत चाहा भुलाना तुमको इस दिल से मगर पाया मेरी जान बस रही तेरे गाल के तिल में।
✍️कवि कुमार देवेश
निगाहें ढूंढ़ती तुमको हर एक महफ़िल में,
तेरी सूरत सलोनी बस गई है मेरे इस दिल में,
बहुत सोचा बहुत चाहा भुलाना तुमको इस दिल से मगर पाया मेरी जान बस रही तेरे गाल के तिल में।
✍️कवि कुमार देवेश