मेरी जातक कथा
शिव की थी मैं अति प्यारी, नाम हमारा उमा कुमारी ।
सुनाऊँ मैं अपनी जातक कथा, मत कहना है मनगढा ।
धरती की एक तपस्विनी नारी, शिव से बेटी याचना की भारी ।
त्रिकालदर्शी किया अनदेखा, सच पूछो तो है मैंने भी देखा ।
हमने कहा है प्रभु आपकी महिमा मंडित, होने न दूँगी उसको खंडित ।
चली मैं धरणी की ओर, देख उनकी तपोबल घोर ।
शिव बोले धत! धरा पर है क्या? नारी का सम्मान, युहीं करे तप वह नादान ।
जो होगा सो हो स्वामी, ब्रह्मा से कह निर्माण कर प्राणी ।
ब्रह्मा बोले, आज है बर्षांत, चले सोने अब होकर शांत ।
आज्ञा ही थी शिव का ऐसी, धरती खरोंच मूरत बनी जैसी तैसी।
आंख नाक बनी सुन्दर सारी, मुंह बन गया डबल पिटारी ।
थी उस समय भी गांधीजी की चर्चा, असहयोग आंदोलन की मिली हमें भी पर्चा ।
हमने भी असहयोग किया, गुस्साए ब्रह्मा एक हथौड़ा दिया ।
टुट गया मेरा नाक, क्या बोलूँ अब क्या होगा खाक।
मत कहना किसी से मेरा रहस्य, बैरी सुनते ही देंगे हंस ।
स्मिता लिए तब शिव बोले, क्या सुन्दर रूप है अति भोले ।
शरीर है शिखरी विशाल, नाक बना अब दक्कन का पठार ।
मुंह पहले से ही थी बंगाल की खाड़ी, जा धरती पर तू दुलारी ।
सच पूछो तब आया गुस्सा, क्या कहूँ उस दिन का किस्सा ।
वह 31 दिसंबर की थी रात, मिली मधुर संगीत की वात ।
खुश हुआ मन, जो थी दुःखी, हो रही मेरे ही आगमन की हीं खुशी ।
नव शिशु का होगा क्रंदन, लोग करेंगे मेरा अभिनंदन ।
यह सोच हमने जोर से चिल्लाया, धरा-गगन हर्षेण हर्षाया ।
तभी एक कलमुहीं दासी, दी झाड़ू की हमें वो धांसी ।
बेटी बन कर ही आई, गला फाड़ फाड़ कर क्युं चिल्लाई ।
उसके डर से मैं हंसते आई, क्या कहूं दुःख की बात बताई ।
पूर्व काल था कितना मजा, धरती पर मिली हँसने की सजा ।
चोरी भी छुपा न पाई, जाने कितने रावण-कुंभकर्ण भाईजी से थप्पड़ खाई ।
हूँ न अब मैं भोली भाली, दूँगी उस कलमुहीं को संस्कृत में गाली ।
हाँ अब सृजन न करना मेरा नाम, देंगे लोग नासिका पर ही ध्यान ।
बाल्मीकि तुलसी ने भी है लिखा , रावण कुंभकर्ण की ही बहन शूर्पणखा ।
संसार इतने दुःख के बाद कहा तु महत्व हीन, थाकी हारी मैं हूँ दीन ।
तपस्या छोड़ त्रिनेत्रधारी बोल पड़े, तेरे इर्द-गिर्द था, हूँ, रहूँगा मैं खड़े ।
तेरी कविता पुष्प खेलेंगे क्यारी क्यारी, प्रमुदित होगी सृष्टि सारी ।
शिव की थी मैं अति प्यारी, नाम हमारा उमा कुमारी ।
उमा झा