मेरी चाह
सभी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं——–
मैं सिर्फ प्रकृति ही नहीं
विप्लव करने वाली विनाशक भी हूँ
समझ मेरे आक्रोश की अभिव्यक्ति को
और ढा़ल ले अपने अनुरूप
उसने तो अनगढ़े ही छोड़ दिया
मुझे, अपनी तरह कोरा
हर शख्स अपनी कल्पना उकेरता है
मुझमें ,गढ़ता है संवारता है मुझे
पर मैं उसकी अस्मिता नहीं,
खुद की पहचान चाहती हूँ ….
मेरी कजरारी आंखें स्वप्निल तुझसे
अहर्निश घेरे मुझे तेरा फितूर
रक्तिम हुए मैं तेरे टीके -सिंदूर से
सौंदर्य निखरता तेरे नाम का वेणी फूल
पर तेरे कारण मैं सजना नहीं ,
हर पल संवरना चाहती हूंँ…..
मेरे कदमों की चहलकदमी से
गतिमान सम्पूर्ण संसार तेरा
मेरे ही मनोभावों से समेटता
नवरंग घर – आंगन तेरा
पर मैं पैरों में नूपुर नहीं ,
मन की झंकार चाहती हूंँ……
बोझ नहीं हर एक का संबल हूं मैं
अपमान नहीं तेरा अभिमान हूँ मैं
धुरी हूँ मैं, सब मेरे इर्द-गिर्द है
कमजोर नहीं, सबलित हूँ मैं
अब मै संरक्षित नहीं ,
आजाद विचरना चाहती हूँ……
निर्माता हूँ मैं किसी का निर्माण नहीं
नारायण को जन्मने वाली प्रकृति
नारायणी का स्वरूप हूँ मैं
हर शक्ति,कला से पूर्ण नारी हूँ मैं
आद्यंत सर्वस्व रचने वाली मैं ,
स्वयंभू होने का हक चाहती हूँ…..
प्रतिलिपि अधिकार : कंचन प्रजापति