मेरी ग़ज़ल के दो शेर
तेरे शहर में रिश्तो का कोई सम्मान नहीं होता ,
मेरे गांव की तरह मेहमान, भगवान नहीं होता ।।
अपने हाथों से लिखते हैं तकदीर- ऐ -इबारत,
हम गरीबों की किस्मत में, वरदान नहीं होता ।।
तेरे शहर में रिश्तो का कोई सम्मान नहीं होता ,
मेरे गांव की तरह मेहमान, भगवान नहीं होता ।।
अपने हाथों से लिखते हैं तकदीर- ऐ -इबारत,
हम गरीबों की किस्मत में, वरदान नहीं होता ।।