मेरी ख़्वाहिश ने
(2)
मेरी ख़्वाहिश ने मुझ को लूटा है।
ख्वाब देखा जो मैंने, झूठा है ।।
यूँ ही तुम से खफा नहीं हैं हम।
दिल नहीं, ऐतबार टूटा है।।
कुछ नहीं तुझ से प्यार है शायद ।
तेरा एहसास दिल को छूता है ।।
क्यूँ बिछड़ कर बिछड़ नहीं पाये।
साथ कब से हमारा छूटा है ।।
हम मुक़द्दर तो लिख नहीं सकते
जो भी अपना है वही रूठा है।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद