मेरी ख़्वाहिशों में बहुत दम है
चांद से थोड़ी दूरी पर
मेरी सोच सी ऊंची
मेरी ख़्वाहिशें टंगीं हैं
अकेले ही कोशिश करती हूं
ख़्वाहिशों को सच करने की
क़ुव्वत बहुत है मुझमें
लेकिन मेरी क़ुव्वत का अंदाज़ा
मुझसे ज़्यादा मेरे अपनों को है
वो मुझे वहां पहुंचने नहीं देते
अलग-अलग तिकड़म लगाते हैं
आख़िरी सीढ़ी पर पहुंचने से पहले ही
परिवार के झूठे नियम के तहत
मेरी सीढ़ी कपट ओढ़कर खिंच लेते हैं
और मैं भी कम ढीठ नहीं हूं
फिर से लग जाती हूं लगन से
अपनी मेहनत और हुनर से
कोशिश करती रहती हूं सांझ और सवेरे
चांद भी इंतज़ार में है मेरे ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )