मेरी ख़ुद की कचहरी में, मैं ख़ुद को माफ़ करता हूँ
गुनाह कर के जो बैठे हैं, वो ख़ुद को साफ़ कहते हैं
हमारी एक गलती पे, नहीँ चल माफ़ कहते हैं
नहीँ चाहिए तेरी माफ़ी, मैं ख़ुद इंसाफ करता हूँ
मेरी ख़ुद की कचहरी में, मैं ख़ुद को माफ़ करता हूँ ।
गिरेबाँ में ज़रा झांको, ना आँखें खोल पाओगे
तुम्हारी सामने लाऊं, यहाँ ना टिक ही पाओगे
यही बेहतर है ना खोलूँ मुँह, यही अरदास करता हूँ
मेरी ख़ुद की कचहरी में, मैं ख़ुद को माफ़ करता हूँ।
मेरा अपराध इतना है, कि मैं अपराध नहीँ करता
कोई मुझको ग़लत समझे, की परवाह मैं नहीँ करता
ना मैं अपराध करता हूँ, ना मैं वारदात करता हूँ
मेरी ख़ुद की कचहरी में, मैं ख़ुद को माफ़ करता हूँ।
जहाँ इंसाफ होता है, वहाँ फ़रियाद होती है
तेरी अपनी कचहरी में, हमेशा रात होती है
तेरा काज़ी ही बागी है, ना मैं विश्वास करता हूँ
मेरी ख़ुद की कचहरी में, मैं ख़ुद को माफ़ करता हूँ।
मैं जो भी हूँ कि जैसा हूँ, ख़ुद से प्यार करता हूँ
सभी को दिल में रखता हूँ, दिलों पे राज़ करता हूँ
मेरे दिल में बसेरा कर ना मैं फरियाद करता हूँ
“सुधीरा” की कचहरी में, मैं ख़ुद को माफ़ करता हूँ।