मेरी कामना प्रार्थना है,
मेरी निज जीवन के बारे में,
मेरी अपनी कामना,
कुछ इस प्रकार कि है:-
बेहतर होती जिंदगी,
गर जीवन में,
सिर्फ देना ही देना होता,
और देता ही रहता,
उलझ गई जिंदगी,
लेन-देन के चक्र में,
गुरु नानक देव हुये,
जो सबकुछ बाँट हुए तेरे अपने,
सिर्फ और सिर्फ तेरे ही अपने,
महावीर भगवन् बने,
नहीं रखी लंगोटी भी तन पर,
मीरा हुई प्रेम दिवानी,
भूल गई इस जंगल को,
साहेब कबीर जगा गये,
और कह गए,
कुछ नहीं रखा चोटी बढ़ाने !
और मूँछ काटने में !
आचार विचार व्यवस्था है !
मान जाओ,
मत उलझाओ,सुलह जगाओ,
प्रेम के इस उपवन में,
विशेष:-
भौतिक तल पर व्यापार है,
मानसिक तल पर रूग्णता,
हृदय-रस के भावों में खो जाओ,
दुनिया बड़ी सुन्दर है,
उसके होने के आनंद में डूब जाओ,