मेरी क़ीमत
घर लौटते वक़्त,
चलता है दिमाग़ में,
चाबियों का गुच्छा,
बाहर बैठा मेरा कुत्ता,
बिजली का आन-ऑफ़ स्विच,
और पानी का आना न आना,
सब ख़ाली कर जो सुबह था भरा,
एक नया भर कर लौटती हूँ घर,
सोचती हूँ कभी,
काश हो जाऊँ ख़ाली,
बिल्कुल ख़ाली बोतल की तरह,
जिसकी क़ीमत है,
ख़ाली होने पर भी,
पर मेरे दिमाग़ के ख़ाली होने पर,
नही रह जाएगी कोई क़ीमत मेरी,
क्या ख़ाली बोतल से भी,
कम है क़ीमत मेरी?