मेरी कविता
मेरे मन के भावों की,
तुम सुंदर रचना हो।
सरल सरस् शब्दों में,
विचारों की वंदना हो।।
तपती वसुंधरा पर,
तुम शीतल छाया हो।
कोई न तुमको भूले,
ऐसी तुम माया हो।।
जग के हाहाकार में,
शांति थामे खड़ी हो।
हर शब्द तेरा अनमोल,
जीवन पथ की छड़ी हो।।
नभ से लेकर धरा तक,
सब तुझमे समाहित है।
बच्चें बूढ़े सब पढ़कर,
तेरे शब्दों पर मोहित है।।
घरों के दरवाजे बंद है,
आँगन अब कहाँ ढूँढे ?
प्रेम स्नेह को तरस रहें,
देखों प्यारे-प्यारे गमले।।
—–जेपीएल