मेरी कविता..
मेरी कविता
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मेरी कविता बहुत समझदार है,
भावों का मंतव्य विस्तार है
मुझ पर हक नहीं जताती है
शक में नहीं भरमाती है
कभी तंज नहीं कसती है
मेरी कविता अंतस में बसती है
मेरी कविता मेरे साथ चलती है
उँचाईयों से मेरी नहीं जलती है
मेरी टांग नहीं खिंचती है
मुझे सम्मान से सींचती है
पल-पल की खबर रखती है
संग चित्त के बसर करती है
मेरी कविता मेरा संसार है
संपूर्णता का सार है
वो मुझे समझती है
कमी उसकी खलती है
मुझ पर स्नेह लुटाती है
मुझे अपना बनाती है
मेरी कविता मेरा अश्रुखार है
खुशियों की प्रबल दावेदार है
मैं हँसती हूँ तो वो हँसती है
मेरी उदासी में वो रोती है
मेरी कविता नीर धार है
मेरी कविता समझदार है
रेखा कापसे होशंगाबाद मप्र
स्वरचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित