मेरी कविता,
लिख न सका जो कह न सका,
कविता जिसका मैं हो न सका,
शब्दों अर्थों तक पहुंच कठिन,
और भाव भी अंतिम हो न सका,
दुख दर्द की क्या परिभाषा हो,
सोचो कलम की क्या भाषा हो,
जीवन का अंतिम सत्य कहाँ,
कवि से रखते क्या आशा हो,
कवि के दिल में कुछ भाव बनें,
आहत मन मस्तिष्क में घाव बनें,
बेचैन कलम फिर रह न सकी,
तब जाकर कविता में ताव बने,
कविता में कितना राग रचित हों,
धर्मों के नैतिक भाव खिचित हों,
शोषित पीड़ित के दुख दर्दों की,
कवि का सत्य विराग विदित हों,
कविता से बस इतना नाता है,
कविता ही तो भाग्य विधाता है,
जन का दुख दर्द बस अपना हो,
जन है ईश मुझे वही तो भाता है,