मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
मुहब्बत की दुनिया के सलीके बदल गये,
चाहते, रस्मों व अंदाज के तरीके बदल गये।
इम्तेहान के ढंग नहीं मायने बदल गए,
वफा वे खुद करते नहीं, उनकी उम्मीदें बदल गए।
अजीब रस्म है मियां इस मुहब्बतें दर्द का,
मैं वही रहा, पर वो न जाने कब बदल गये।