मेरी कलम से…
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
नारी धर्म की नाशक,
स्त्री की लाज को धो बैठी।
कैसे तेरा सम्मान करूं,
तु तो विध्वंसक हो बैठी।
रूप नही कुरूप हो तुम,
प्रेम की खंडित स्वरूप हो तुम।
किसने तुमको है पूज दिया,
पूर्ण विकरित प्रतिरूप हो तुम।
धर्म नही अधर्म हो तुम,
असत्य की पहचान हो तुम।
“राधा-मां” तो कह नही सकता,
सिर्फ कलंकित एक नाम हो तुम।
12-08-2017