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13 Feb 2022 · 1 min read

मेरी कलम मेरी कविता

ज़िंदगी कहाँ इतनी आसान थी
क्षितिज को छूने की चाह थी
मालूम था वो सिर्फ़ नज़रों का धोखा है
शिथिल सी साँसो में ना उमंग थी
ना सूने जीवन की कोई राह थी
लेकिन आरज़ू फिर भी यही जवाँ थी …..

एक दिन न जाने कहाँ से तुम आए
वीरान पड़े जीवन को गुलज़ार करने
मेरे धूमिल परिसर को बाग़बान करने ….
दिल एक बार फिर धड़कने लगा
रात दिन तुम्हारा ख़याल भाने लगा
जीने का मक़सद दिखने लगा ….
बेलगाम सी होती ज़िंदगी मानो सवरने लगी
कोरे काग़ज़ में रंग भरने लगी
मेरी प्यारी क़लम
तुम और तुम्हारी कविता मदहोश सा मुझे करने लगी…..

Language: Hindi
219 Views

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