मेरी कलम जो भी लिखे
मेरी कलम जो भी लिखे
मेरी कलम जो भी लिखे , इबादत समझ क़ुबूल कर मौला
अमानत हो जाए ये कलम , इतना तो करम कर मौला
अल्फाज़ों का एक समंदर दे , जो तुझे बयाँ कर सके मौला
अश्फाक हो तेरा मुझ पर , इतना तो करम कर मौला
अपनी परवरिश में ले मुझको , मेरे अल्फाज़ों को इबादत कर मौला
मेरी कलम को अपनी बंदगी अता कर , मेरे अल्फाज़ों को सदका समझ मौला
मेरी कलम को तुझसे कोई शिकवा नहं , मेरी कलम को सुकूँ अता कर मौला
तेरी इबादत का गुलिस्तां रोशन कर सकूं, इतना करम कर मौला
तेरे नूर का चर्चा मेरी कलम से हो , यह करम कर मौला
मेरी कलम को अपने दर की रौशनी अता कर मौला
मेरी आरज़ू है मेरी कलम से रोशन हो मेरी जिन्दगी का सफ़र
मेरी इस आरज़ू को अपना करम अता कर मौला