*मेरी इच्छा*
मेरी इच्छा
रंग रूप हो एक हमारा, एक हमारा विधान है।
अन्जान भी हमारे यहां, बन जाता मेहमान हैं।
बहे समरसता की गंगा, समान सब इंसान हो।
ईर्ष्या नहीं प्रेम हमारी, जन-जन की पहचान हो।
ऐसा देश हो हमारा भाई, कर्ज ना हो एक भी पाई।
कोई निर्दोष की बिन दोष के, हो ना कभी पिटाई।
नीति हो हमारी ऐसी, हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई।
जाति धर्म चाहे कुछ हो, आपस में हों भाई भाई।
सभी का हो ऐसा वेश, ना कोई करे द्वेष।
बड़ी से बड़ी बात का, निपट जाए घर पर केस।
एक दूजे का सम्मान करें, पापी से हम ना डरें।
जीवन में जो करना हमको, उसके लिए आह भरें।
ऐसी मीठी हो भाषा हमारी, किसी का मन न दुखाएं।
ऐसे हो कार्य हमारे, हम जग में पूजे जाएं।
ना किसी से करो लड़ाई, आपस सब भाई भाई।
किसी का दिल दुखे जिससे, ऐसी ना तुम करो कमाई।
शासन-प्रशासन ऐसा हो, जो दूसरे देश सलाम करें।
अच्छा हर जगह बताएं, खुद इसका गुणगान करें।
भाए सभी को यहां की शिक्षा, ताके दुनिया इसकी ओर।
विश्वबंधु हो नीति हमारी, ना मिले इसका छोर।
भाई भतीजावाद रहे ना, ना रहे रिश्वतखोरी।
पुलिस विभाग भी सतर्क रहे, पकड़ ले इनकी चोरी।
एक दूसरे से प्रेम करें सब, मनमुटाव को दो धिक्कार।
भूखा भी ना रहे कोई भी, भूखा का ना हो शिकार।
एक दूसरे की मदद करें सब, अपना हाथ बढ़ा कर।
ना ईर्ष्या से मिलता कुछ, ना दूसरों को सताकर।
ध्यान रहे मान रहे,हर जगह सम्मान रहे।
दुष्यन्त कुमार की कलम में लिखने की, हर समय जान रहे।
युद्ध छोड़ बने बुद्ध हम, गैरों को ना हम ताकें।
ऐसे हमारे सद्गुण हों,इनको हम सब में बांटें।
दुष्यन्त कुमार जैसी सभी की, हों ऐसी इच्छाएं।
कभी ख़त्म न हो हमारी, ऐसी अमिट अभिलाषाएं।