मेरी आस्था।
मैं जहां भी देखता हूं, वहां तुम्हें ही पाता हूं।समस्त जीवों में प्रभू के दर्शन करता हूं। कभी नहीं निहारता पत्थर को, मैं अपनी आस्था को मानवता से जोड़ता हूं। जहां भी देखता हूं वहां तुम्हें ही पाता हूं ।——-दुनिया आपके प्रकाश से ही चलती है। मैं सूर्य भगवान को नमन करता हूं।—–+—–कोई प्रकृति की भाषा नही समझता है? मैं सुबह उठकर धरती माता को मनाता हूं।सबके सब लगे हैं,निज स्वार्थ सिद्धि में।मैं पर -उपकार को अपना धर्म बनाता हूं। तुम अभी तक सोये हुये हो, ऐसा प्रतीत होता है!