मेरी आँखो से…
खुल रहे हैं
कुछ पन्नें
देखो
मेरी आँखो से
छुपे है जिनमें
करारे हर्फ
और
ढेर सारा दर्द
बनकर कुछ
शब्दों की
माला
पसंद आये
तुम्हें
जो कविता
नज़्म
या गीत
चुन लेना
और
सहेज लेना
तुम्हारी पसंद के
कुछ नगमें
लिख रखे हैं
चाहो तो
पढ़ लेना
हाँ मेरे शब्द
तपते थार में
शम्मी के पौधे से हैं
जिन्हें कोई
अपने घर में
नहीं चाहता लगाना
लेकिन शम्मी
अक्षय बूटी
सा होता
जो होता है
दर्द निवारक
जो लगे
सदाबहार के फूल से
मेरे अहसास
तो
सहेज लेना
उन्हें भी
शायद
महसूस हो तुम्हें
मेरी अहमियत
हाँ
महुआ की खुशबू
बसी है
इन पन्नों में
कभी कर सको
तो महसूस करना
इसकी महक
यहीं इन्हीं
पन्नों में
बस
तुम
इतना कर लेना
कि
बसा लेना
इन जज्बातों को
अपने सीने में
जब ये
समा जाये
तुम्हारे रोम-रोम में
तब
बहुत हल्का
महसूस करोगे
खुद को
बताओ!!….
बसा लोगे ना….
और कुछ नहीं
तो
चुन ही लेना
कुछ अहसास
चुन लोगे ना…..
संतोष सोनी “तोषी”
जोधपुर ( राज.)