मेरी आँखों से जो ये बहता जल है
मेरी आँखों से जो ये बहता जल है
ये सब तेरी ही वाणी का तो छल है
मुझ में बहती एक नदी सी चंचल है
क्या तुझ पत्थर दिल में भी कुछ हलचल है
तेरी यादों का जो मुझ में जंगल है
उसमें महके सपनों का ज्यों संदल है
ये दिल जब से तेरे प्रेम में घायल है
तब से दुनिया मुझको समझे पागल है
किसने दस्तक दी है फिर से इस दर पर
बंद हृदय की वर्षों से ये साँकल है
जैसे थाम लिया हो मुझ को फूलों ने
तूने जब से छुआ मेरा ये आँचल है
इस जीवन की एक पहेली सी तुम हो
जिसका मुझको नहीं मिला कोई हल है
– मीनाक्षी मासूम