मेरी आँखें छलकते पैमाने
ग़ज़ल
मेरी आँखें छलकते पैमाने।
क्यों भटकते हैं आप मय-ख़ाने।।
जान-ओ-दिल आपके हैं क़दमों में।
कीजिएगा क़ुबूल नज़राने।।
तुम हवा करके अपने दामन से।
क्यों लगे हो ये आग भड़काने।।
आओ गेसू सँवार दो मेरे।
छोड़ो तस्बीह के मुए दाने।।
लोगों! पत्थर से मारिये हमको।
हो गये हम जो उनके दीवाने।।
अब छुपाने से फ़ायदा क्या है।
हर ज़ुबां पर हैं अपने अफ़्साने।।
हाले-दिल हमसे अब छुपाते हो
क्यों समझते हो हमको बेगाने।।
राहे उल्फ़त में रख दिया हैं क़दम।
होगा अंज़ाम क्या ख़ुदा जाने।।
हिज्र में शम्अ जल रही है “अनीस” ।
दूर से मुस्कराते परवाने।।
– अनीस शाह “अनीस”