मेरा होना….
कई बार कहने को कम..
पड़ जाते है अल्फ़ाज़ मेरे..
और कई बार लबों संग…
दिल के तकरार हो जाते …
ज़माना कहता है कि तेरे..
ख्यालों की ताबीर हूँ मैं..
जो तू खींच दें लकीरें तो
मुझसे मेरा मैं का मिलना हो जाये..
चंद गिनती के ही बाक़ी
है वक़्त मेरे दामन में..
और ज़िन्दगी तेरे साथ वर्षों
जीने की ख्वाहिश है थामे…
भरोसे को लहू से सींचा है जो तुमने..
आज वही रंग फिर
स्याह होने को आया है…
कर अलविदा रजामन्द होकर तू..
क्योंकि अब तेरी दुनिया में
मेरा ठहरना ही जाया है…..
मेरा ठहरना ही जाया है
—-अमृता ‘निधि’
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