मेरा स्त्रीत्व
नहीं
ये डर नहीं है मुझे
कि तुम परास्त कर दोगे
मुझे मेरी सारी शक्तियों के साथ,
मेरी अस्मिता के
तार तार करके
जमा लोगे मुझ पर
अपना आधिपत्य
मुझे ये भी डर नहीं
कि रोक लोगे वेग
लहराकर चलने वाली
नदियों का
या फिर हमारी हँसी को
जो बहती है
हवाओं के साथ
और उतरती है
किसी झरने सी
मधुर तानों के साथ
मुझे ये भी डर नहीं
कि तुम
पुरुषवादी भय दिखाकर
विषाक्त नील के निशान
छोड़ दोगे मेरी आत्मा पर
और स्थापित कर लोगे
वर्चस्व मेरी आत्मा पर
तुम ऐसा भी नहीं कर पाओगे
कि समूची सृष्टि से
मिटा पाओ आधी दुनिया को
नहीं तुम में नहीं है
इतनी शक्ति
हाँ डर है
तो बस इतना
कि तुम्हारे द्वारा
नोची जाने वाली
मेरे अंदर की कोपलें
ठूँठ न बन जाएं
जो अब तक देती आ रहीं हैं
जीवन की धूप में तुम्हें छाया
मुझे ये भी डर है कि
सूख न जाये
मेरे अंदर का
वह मीठा प्रेम स्त्रोत
जिसमें सराबोर होकर
तुम जान पाते हो
जीवन की गहनता
मुझे डर है कि
कहीं कुचल न जाये
मेरे अंदर की कोमलता
जिसके स्पर्श से
भूल जाते हो तुम
जीवन की सारी कठोरता
हाँ मुझे डर है कि
पिघलकर
कहीं बन न जाऊँ
कोई शिला
जो सजाई जाऊँ
मंदिरों में
और तुम अपनी
समस्त शक्तियों के साथ
नतमस्तक हो जाओ
मुझे डर है कि
तुम खो रहे हो
मुझमें से धीरे धीरे
मेरा स्त्रीत्व