मेरा सुकून
कभी फुरसत
में निकालता हूँ
फिर
रख देता हूँ
सहेज कर
वो गलियाँ, वो दरख्त
और मिट्टी की खुशबू
बेपरवाह बचपन
ओढ़े हुए है,
खपरैलों की छत,
पेड़ों की झुरमुट से
उगता सूरज,
बादलों में रुई के
बनते बिगड़ते चेहरे,
बारिश के बाद का
इंद्रधनुष,
अनगिनत तारोँ की रोशनी
औऱ
तालाब में उतरा
चांद।
कभी टीन की छत पर
बजती बारिश और
हवाओं का शोर
गर्मियों की सुबह
में बदन छूती हवा औऱ
नीम के पेड़ की
भीनी महक
सर्दियों की ठिठुरन,
अलाव जलाये
झुंड में तापते
नन्हे हाथ,
रजाई से उलझती ठंड और
जाड़ों की खिली धूप
में
कहीं लिपटा पड़ा है
मेरा सुकून अब तक!!!