मेरा शहर
मेरा शहर उजड़ रहा है,
मायुसी के दौर से गुजर रहा है।
मेरा शहर. . . . . .
कभी खुशहाल हुआ करता था,
मजदूरों का ढ़ाल हुआ करता था।
आज स्वयं की रक्षा नहीं कर पाता है,
उजड़ने की भय से भरे गर्मी में कंपकपाता है।
चुपके से रो लेता है देखकर आईना,
बड़े मुश्किलों की दौर से गुजर रहा है।
मेरा शहर. . . . . .
खदानें बंद हो रही है, हाथ तंग हो रही है।
ब्यापार मंद हो रही है, बेरोजगारी की जंग हो रही है।
खण्डहर पड़ रही है मकानें, सुनी पड़ रही है दुकानें।
आशा भरी नजरों से, आशावान हो रही है।
कोई अर्जुन आयेगा, चक्रव्यूह को तोड़ पायेगा।
ऐसा स्वपन मन में उभर रहा है।
मेरा शहर. . . . . .
ये शहर अब तो, सपनों में जीता है।
समय से पहले ही, बुढ़ा दिखाई देता है।
क्या रावघाट, खदान खुल पायेगा ? जगदलपुर रेल कभी चल पायेगा ?
बिखर रहे हैं सपने, छुट रहे हैं अपने।
एक दर्द सीने में उभर रहा है।
मेरा शहर. . . . . .