मेरा शहर
अजब हो गया मेरे शहर का सिलसिला
घर पास पास और दिलों में हो गया फासला
हर शख्स है पढ़ा लिखा, न कोई अनपढ़ रहा
बाग हो जैसे कोई सुगंध के बिना खिला
इंसान हैं देखो सो रहे फुटपाथ पर
कुत्तों को बिस्तर मखमली मिला
बच्चे बाहर खेलते नहीं सब खेल दिए भुला
इमारतें हैं अब वहां, जहां था मैदान खुला