बहुत उम्मीदें थीं अपनी, मेरा कोई साथ दे देगा !
जन्मदिन के मौक़े पिता की याद में 😥
जो व्यक्ति आपको पसंद नहीं है, उसके विषय में सोच विचार कर एक
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
पीठ पर लगे घाव पर, मरहम न लगाया मैंने।
कभी लौट गालिब देख हिंदुस्तान को क्या हुआ है,
बस अणु भर मैं बस एक अणु भर
वक्त के धारों के साथ बहना
*दृष्टि में बस गई, कैकई-मंथरा (हिंदी गजल)*