मेरा रावण मित्र
आज हमारे एक लेख पर कियामित्र ने प्रश्न
क्यों इतना गंभीर लेख ये दशहरे का है जश्न
हमने कहा कौन रोकता,जश्न तुम मनाओ
दशहरे का पर्व है रावण को मार गिराओ
बोले अवगुणो का रावण नही हममे अब तक
मै ईमानदार,मै सदाचारी ,मै मात पिता का सेवक
मै दानी,मै परमार्थी,मै बडा आस्तिक
नही देखता परस्त्री ,ना करता मदिरा सेवन
हम बोले मै,मै की तूती जो इतना बजा रहे है
अभिमान का अवगुण हमको आप दिखा रहे है
सारे सदगुणो को अभिमान से ढक रहे है
देखो धीरे धीरे रावण आप बन रहे है
मना लो मित्र आज तुम भी ये पावन त्योहार
कर दो आज अपने अहम के रावण का संहार