मेरा यह नसीब था ___ घनाक्षरी
जीतने के लिए मैंने खेला खेल डटकर ।
मिली नहीं जीत मुझे मेरा ये नसीब था।।
दांव पर दांव चले एक नही मेरी चले
मुझसे विरोधी मेरा धन के करीब था।।
सिटी मारी रेफरी ने जीती बाजी मैंने हारी।
जारी हुआ फरमान फैसला अजीब था।।
टूट गई आशा मेरी निराशा में डूब गया।
सबूत जुटाता कैसे क्योंकि मैं गरीब था।।
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पीड़ा किस को बताऊं पास किसके मैं जाऊं।
चुपचाप बैठ के नजारा देख रहा हूं।।
आज नहीं कल नही कभी न कभी ही सही।
किसी का तो मिलेगा सहारा देख रहा हूं।।
छोडूंगा ना परिश्रम जब तक रहे दम।
भविष्य सुनहरा मैं प्यारा देख रहा हूं।।
निकलेगा चांद कभी फैलाने को उजियारा ।
आज चाहे अंधियारा सारा देख रहा हूं।।
राजेश व्यास अनुनय