मेरा मौन बोलेगा
मैं आज तक स्वयं ही न समझ पाया की
मैं मनुष्य हूँ या काठ ,
निज में ही समाहित किये हूँ
वेदना विराट,
अंतर्द्वंद से मर्माहत हो मेरा जीवन से हो गया उचाट ,
मुझ पर घनेरे अंधकार ने हर प्रहर तांडव किया प्रचंड
अंधकार के इस विकराल पाश को मैं
धैर्य के प्रखर तेज से भी पाया न काट ,
जीवन के हर पथ पर निज को एकाकी पाया
इस संसार के बोझिल आवरण में
कठोर आघातों से ही टूटा हूँ ,
सांसारिक पाश्विकता के वशीभूत हो पशु बना मैं
अश्रु भरे दृगों से मैं यह आज बोलता हूँ
मैं नहीं कौन बोलेगा ?
जो मेरी वाणी का अंत करोगे
तो मेरा मौन बोलेगा |
द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’