” मेरा मैं “
क्यों बदलाना चाहते हो मुझे
आकर मुझे भी बताओ
चलो सारा का सारा नही
थोड़ा सा ही समझाओ ,
मैं ऐसी हूँ मैं वैसी हूँ मैं जैसी भी हूँ
तुम मुझको ऐसे ही स्वीकारो
बात बात पर हर बात पर
तुम मत मुझको सुधारो ,
तुमसे झगड़ती हूँ मैं
उसकी वजह बताओगें
या अपनी भी गल्तियों का
इल्ज़ाम मुझ पर लगाओगे ,
मैं बहुत कड़वा बोलती हूँ ?
चलो ये बात स्वीकारती हूँ
लेकिन सबके सामने मीठा बोल कर
पिछे छुरी तो नही चलाती हूँ ,
क्या कहा ? सांवला रंग है मेरा
अरे ! इसमें मेरा क्या कसूर है
तुमको गुण नही दिखते मेरे
आँखों पर उपरी रंग का चढ़ा सूरूर है ,
हर वक्त मीन – मेख निकालने में
जरा नही हिचकिचाते हो
इतना ज़हर बोलते वक्त
थोड़ा भी नही सकुचाते हो ,
कमियां किसमें नहीं होती हैं
पर यूँ ना एहसास कराओ
खुद को मेरी नज़रों में
तुम यूँ ना गिराओ ,
मेरा मेरे मैं के साथ रहने में
ऐसे मत घबड़ाओ
मुझको मेरे मैं के साथ
पूरा का पूरा अपनाओ ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 27/09/2020 )