” मेरा मैं खुद पे मरता है “
कोई इसपे मरता है
कोई उसपे मरता है
सबकी ऐसी की तैसी
मेरा मैं खुद पे मरता है ,
कोई गोरे रंग पे मरता है
कोई गजब ढ़ंग पे मरता है
सबकी ऐसी की तैसी
मेरा मैं खुद पे मरता है ,
कोई ख़ास शख्स पे मरता है
कोई चेहरे के नक्श पे मरता है
सबकी ऐसी की तैसी
मेरा मैं खुद पे मरता है ,
कोई किसी की चाल पे मरता है
कोई किसी के हाल पे मरता है
सबकी ऐसी की तैसी
मेरा मैं खुद पे मरता है ,
कोई लंबे बाल पे मरता है
कोई लाल गाल पे मरता है
सबकी ऐसी की तैसी
मेरा मैं खुद पे मरता है ,
कोई मोहनी हँसी पे मरता है
कोई प्यारी सखी पे मरता है
सबकी ऐसी की तैसी
मेरा मैं खुद पे मरता है ,
कोई नज़ाकत पर मरता है
कोई नफ़ासत पर मरता है
सबकी ऐसी की तैसी
मेरा मैं खुद पे मरता है ,
कोई सुंदर पहनावे पर मरता है
कोई झूठे दिखावे पर मरता है
सबकी ऐसी की तैसी
मेरा मैं खुद पे मरता है ,
कोई पैसे वाली पर मरता है
कोई कमाने वाली पर मरता है
सबकी ऐसी की तैसी
मेरा मैं खुद पे मरता है ,
मन तो बस मन की सुनता है
जब देखो हर बात पे मरता है
मन की ऐसी की तैसी
मेरा मैं खुद पे मरता है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 08/06/2021 )