मेरा मुरशिद
उस दर पर मैं कई बार गया
उस दर पर मुरशिद रहता था
वह ज्ञान का दीप जलाता था
मुस्काता था और गाता था
उस दर पर मै कई बार गया।
सच्चा सा इंसान था वह
जीवित सा आत्म ज्ञान था वह
वह अपने पास बैठाता था
मुस्काता था और गाता था
उस दर पर मैं कई बार गया।
वह सादगी की मूरत था
वह प्यारी सी एक सूरत था
वह प्रेम की झलक दिखाता था
मुस्काता था और गाता था
उस दर पर मैं कई बार गया।
वेंदो वाणी की शान था वह
गीता का आत्म ज्ञान था वह
वह मंत्र मुग्ध कर जाता था
मुस्काता था और गाता था
उस दर पर मै कई बार गया।
टूटे से घर में रहता था
छत को भी अम्बर कहता था
मुक्ति की राह बताता था
मुस्काता था और गाता था
उस दर पर मैं कई बार गया।
उसके भीतर क्रोद्घ न था
मद मत्सर और मोह न था
आनन्द का स्वाद चखाता था
मुस्काता था और गाता था
उस दर पर मै कई बार गया।
बातों ही बातों मे उसने
यह सोचा कि अब चलते हैं
बहुत हुआ जीवन दर्शन
निर्वाण की राह पकड़ते हैं
मुस्काते बन्द हुईं आंखें
आशीर्वाद मुख से निकला
वह चला गया हँसों के सम
पथ का निशान न शेष रहा।
किरणों में,गगन घटाओं में
उसकी प्यारी छवि रहती है
नदियों में,मस्त हवाओं में
उन्मादित हो कर कहती है
मत व्यर्थ करो इस जीवन
अपने अन्तस् को पहचानो
मत उलझो लहर विचारों से
तुम अपने आप को पहचानो।
विपिन