मेरा महबूब माह पारो में
मेरा महबूब माह पारों में।
हम उलझते नहीं सितारों में।
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जौहरी सा मुझे तराशा है।
तेरी तखलीक हूं हजारों में।
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चांद किस बाम पर निकलता है।
अब तो चर्चे हैं ग़म के मारो में।।
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दिल मेरा आईना,संभालो तुम।
टूट सकता है यह इशारों में।।
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उसने देखा नहीं पलट कर भी।
मैं तो तकता रहा गुबारों में।।
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तुझको पाने की ख्वाहिशें लेकर।
कितने मुश्ताक है क़तारों मे।
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अपनी किस्मत तुझे समझता हूं।
यक़ी मुझको नहीं सितारों में।
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हुस्न उसका सगी़र क्या कहना
आग लग जाए कोहसारों में।
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डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाजार बहराइच