मेरा मन
मेरा मन कविता करने को मचलता है ,
क्या लिखूँ ! यही सोच घबराता है
सोचा मुख्य अध्यापिका पर लिखूँ ,
उनके चलने के ढंग पर,
उनकी साड़ी के रंग पर या
उनकी दबंग छवि पर लिखूँ
वह पुचकारती हैं ..
तो फुलझड़ी -सी लगती हैं …
गलतियां निकले तो
नकचढ़ी -सी लगती हैं
डांटे तो..
कड़क बिजली -सी लगती हैं
फिर सोचा नहीं यार ,
कहीं हो गई नाराज़ तो पड़ेगी मार!
कविता का मुद ही ऑफ हो गया ,
लेकिन बिन प्रयास ..
मेरे लफ़्ज़ों को कविता का रूप मिल गया l