मेरा मन होली बन जाये
सम्पूर्ण आपदा जल जाये होलिका की तीव्र आग में
कोई कष्ट ना शेष रहे जीवन के व्यापक बाग में
हर्ष से हर्ष का संगम हो दिव्य वातावरण के प्रयाग में
बाधा हर लो हे प्रभु! पथ अनुगुंजित हो मधुर राग में
कंधे पर उठकर जीवन खुशियों की डोली बन जाये
आशा है मेरा मन अब होली बन जाये
इंद्रधनुष सा सतरंगी अनुभव हो जीवनक्रम के भाग में
विषम क्षण भी परिवर्तित हो सुगम क्षण के अनुराग में
मानव का कोना-कोना प्रफुल्लित हो आनंद के विभाग में
आओ मिलकर प्रेम बरसायें अपनों पर इस फाग में
हे परम पिता!मिठास से भरी हर बोली बन जाये
आशा है मेरा मन अब होली बन जाये
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.