मेरा मन बैरागी हो गया
मेरा मन बैरागी हो गया,
गिरिधर तुम से अनुराग कर।
जोगन बन बैठी हूँ मैं,
संसार के सब रंग त्याग कर।
यूँ लगता है मेरे देह में,
तेरी आत्मा समाई है।
मैंने जब भी दर्पण देखा,
तेरी सूरत नज़र आई है।
मैं कितनी भी दवाएं,
ले आऊँ दवाखाने से।
मेरा दरद मगर मिटेगा,
सिर्फ़ तेरे आ जाने से।
सुना दो हमारे बिरह की गाथा,
इन पत्थरों का कलेजा पिघला दो।
जो कहते हैं तुम न आओगे,
उन्हें आ कर के तुम दिखला दो।
त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)