मेरा मंदिर
नया साल नई सुबह
नये उत्साह के साथ
मंदिरों में उमड़ती भीड़
कतारों में न जाने
किस चीज की तलाश में
घर में उपस्थित जीवित
देवी देवता को छोड़
उनके आशीर्वाद से होकर
वंचित सदियों से
पाखंड में जीने को मजबूर
सच्चाई से मुँह मोड़
खड़ा हो जाता है मंदिरों के द्वार पर
मन में लाखों अरमान लिए
हर साल इस आस में
मिले उसे ऊचाईयां जीवन की रफ्तार में
उसे क्या पता
जीवन के हर बदलाव में
है उस देवी देवता का त्याग
उनका वह प्यार जो दिखता नहीं
रहता हमारे साथ हर पल
निश्छल निर्मल
फिर क्यों नहीं करे उनका सम्मान
पाये उनका आशीर्वाद हर रोज
पीपल की सुखद छाव की तरह
टूटे रिश्तों के बीच
हर सुबह हर साल
सालों साल उपस्थित है
मेरे देवी देवता घर में
माता और पिता के रूप में
डॉ.मनोज कुमार
मोहन नगर गाजियाबाद