मेरा भाग्य और कुदरत के रंग…… एक सच
शीर्षक – मेरा भाग्य और कुदरत के रंग…. एक सच
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मेरा भाग्य और कुदरत के रंग हम सभी जानते हैं कि जीवन में हम सभी के साथ भाग्य और कुदरत के साथ-साथ हमारा अपना कर्म भी होता है हम सभी शब्दों के साथ कहानी पढ़ते हैं और उन्हें कहानियों से हम आजकल चलचित्र या फिल्में देखते हैं जो कहानी होती है वह किसी न किसी के जीवन से या किसी न किसी घटना से जरूर संबंध रखती है क्योंकि हमारे जीवन में कभी ना कभी कोई घटना घटी होती है और हम उसे घटना को देखकर डर जाते हैं या उसे सोचकर हम ईश्वर का नाम देते हैं या भाग्य या कुदरत को नाम देते है।
आज शांति अपने काम पर से लौटते हुए घर जल्दी-जल्दी आती है तब शांति के घर में उसके पति लखन पूछता है क्या बात हुई आज तुम इतनी गुस्से में और जल्दी-जल्दी क्यों घर वापस आ रही हो शांति कामवाली बाई है और वह कहती है इन मलिक को का भी क्या है। हम घर में काम करने वाले क्या इंसान नहीं होते लखन पूछता है ऐसा क्या हो गया शांति जो तुम इतना भड़क रही हो सुबह से चाय पीने के बाद में काम पर जाती और उसे पर भी साहब बोलते तू इतना देर से क्यों आई और सारा काम करने के बाद भी कोई त्यौहार पर कुछ इनाम या कुछ दूसरे के लिए सहानुभूति न है यह किसी में भी हम तो मन भावों से मलिक को दुआ देते हैं कि काम अच्छा हो हमारा नाम यही परंतु यह पैसे वाले लोग छोटे लोगों को समझते ही।
शांति अभी तो मैं काम घर पहुंच तब मालिक मुझसे बोले कि जल्दी शाम को आ जाना क्योंकि होली का रंग का त्यौहार है और बहुत से काम करने हैं। हम सभी अपना त्यौहार ना मानेंगे क्या हम भी तो इंसान हैं लखन कहता है अरे शांति हिम्मत और धैर्य से कम देते हैं कोई बात नहीं है बड़े लोगों का काम ही ऐसा है कि जब वह पैसा देते हैं तो सोचते है कि हमने उस आदमी को खरीद लिया। सच तो यही है कि हम सभी जीवन में मानवता और एक दूसरे के प्रति लगाव भूलते जा रहे हैं हम केवल अपने स्वार्थ और अपने कामों के साथ-साथ ही मतलब रखते हैं और आज का इंसान मतलबी है तो आदमी है और मतलब नहीं है तो आदमी से भी कोई संबंध नहीं और मतलब नहीं है तो आदमी से भी कोई संबंध नहीं है। शांति कहती है हम भी क्या कर सकते हैं आपकी बीमारी मैं आपको कोई काम नहीं मिलता पेट तो खाना मांगता है तब लखन कहता है सही बात है न यही तो हमारी मजबूरी है हम दोनों की जीवन में ईश्वर से परीक्षा ले रहा है वह हमारी परेशानी कौन समझेगा। हम खर्च कम से कम करते हैं वहां हमारे परिवार और हमारी आर्थिक स्थिति हमारी परेशानी को कोई नहीं समझता है वह केवल ही यही समझते हैं कि हमने पैसा दिया है तो उतने घंटे हमें काम भी लेना हीं है क्योंकि यह आजकल का तरीका बन गया।
शांति आंखों में आंसू भरकर लखन के गले लग जाती है और कहती है वह भी हमारे क्या दिन थे जब तुम काम करते थे और मैं घर पर तुम्हारा इंतजार करती थी और वह हमारा बेटा जो हमसे जवानी में हमारे ईश्वर ने हमसे छीन लिया। लखन आंखों में आंसुओं को छुपाते हुए शांति से कहता है बस तू भी पुरानी बातें याद करती है अब सो कोई जाने वाला लौट कर थोड़े न आता है। और ईश्वर को क्या कहती है बस समय को कह सकती है कोई काम समय से होता है तो अच्छा होता है अगर हमारा बेटा समय से जीवित रहता और हम अपने बेटे के कंधों पर जाते तब अच्छा होता परंतु जो हमारा भाग्य और कुदरत के रंग शांति और लखन एक दूसरे के आंखों में देखकर दोनों एक दूसरे के आंसू पोंछते हैं और और लखन शांति को गले से लगा लेता है शांति अब छोड़ो भी सब इंतजार कर रहे होंगे जाना है और वह अपने आंसू पोंछते हुए। घर से निकल पड़ती है।
साहब के घर पहुंच कर शांति घंटी बजती है। सब की बेटी प्रिया दरवाजा खोलती है। शांति अरे प्रिया बेटी तुम कब आई अरे शांति आंटी होली है न कल मुझे तो आना ही था। और आंटी तुम क्यों आ गई अपने घर त्यौहार नहीं मनाओगी । हां हां बेटी मैं भी बनाऊंगी बस साहब ने बुलाया था। मैं इसलिए आ गई साहब प्रिया बेटी कौन है पापा शांति बाई हैं आपने बुलाया था क्या हां हां मैंने बुलाया था कल होली है ना मैंने शांतिबाई के लिए एक साड़ी खरीदी थी। वह पार्सल अभी आया है इसलिए मैंने शांति बाई को बुलाया था।
प्रिया शांति आंटी को वह साड़ी दे दो और एक लिफाफा रखा है मेरी मेज पर वह भी दे देना बहुत काम करती है तुम्हारे पीछे बहुत मेरा ख्याल रखती है मैं बिस्तर पर ही रहता हूं वही सब काम करती है तुम्हारे पीछे प्रिया शांति आंटी को गले लगा कर होली की शुभकामनाएं देती है और कहती है शांति आंटी मैंने अपनी मां को तो नहीं देखा। पर आपने तो मुझे बचपन से पाला है तभी तो पापा आपको इतना सम्मान देते हैं शांति अपनी आंखों में आंसू भरकर बोलती है साहब भी बस इतना प्रेम देते हैं कि मैं समझ नहीं पाती कभी-कभी कि मैं नौकर हूं या इस घर की सदस्य प्रिया कहती है शांति आंटी घर में अगर कोई काम करता है तो वह भी तो घर का ही सदस्य होता है ना हम सभी को जीवन में अपनी मानवता समझनी चाहिए क्योंकि काम करने वाला भी एक इंसान ही होता है और हम सभी को एक दूसरे का सहयोग जीवन में करना ही पड़ता है तभी तो हमारा भाग्य कुदरत के रंग एक सच जीवन को बताता है अच्छा शांति आंटी अब आपके पति लखन जी की तबीयत कैसी है बिटिया बस हो तो बिस्तर पर ही है ईश्वर जाने कब दिन सुधरेंगे प्रिया चिंता ना करो आंटी भाग्य और कुदरत के रंग एक सच होता है जो हमारे कर्म और जीवन की राह होती हैं। वह एक समय के साथ ही बदलती है।
शांति प्रिया के हाथ से साड़ी और लिफाफा लेकर घर की ओर जा रही होती है और ऊपर आसमान की ओर देखकर कहती तेरी कुदरत के रंग तू ही जाने बस मैं तो यही कह सकती हूं मेरा भाग्य कुदरत के रंग एक सच वह भी तू जानता है। आज की कहानी भी हमें एक काम करने वाली को भी एक इंसान मानवता के साथ घर के सदस्य की तरह समझना चाहिए क्योंकि हर एक इंसान कुदरत और ईश्वर की बनाई हुई कृति है और उसे कृति के साथ-साथ हम सभी को भी सहयोग देना चाहिए।
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नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र