मेरा न कृष्ण है न मेरा कोई राम है
दोस्तों,
साल के अंतिम पलों में एक ग़ज़ल आप सभी को सादर समर्पित है।
ग़ज़ल
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मेरा न कृष्ण है न मेरा कोई राम है,
कर्तव्य पथ पर चलना मेरा काम है।
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मेहनतकश हूँ पसीना मैं बहाऊँगा,
लूटखसोट कर, पेट भरना हराम है।
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कर्म करता रहूँ चाहे जर्जर हो शरीर,
हूँ पथ पे अडिग, बीते शुबह-शाम है।
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छत मेरा आसमां,धरा मेरी बिछोना,
गुजरे जहाँ बसेरा वहीं तो मकाम है।
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मैं मंदिर-ओ-मस्जिद सब क्या जानू ,
मेरे तो बस मात-पिता, चारों धाम है।
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कोई कुछ कहे फिक्र नही है “जैदि”,
लब्ज प्यार का बोले, उसे सलाम है।
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शायर:-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”