#मेरा धन केवल पागल मन
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★ #मेरा धन केवल पागल मन ★
सावन बीता फिर बीते सावन
पथ पर जुड़े रहे दो नयन
कर्म सुकर्म और श्रवण कथन
सब समय की आँखों का अंजन
कपाट खुले खुले नहीं वातायन
ठिठका सहमा घर का आंगन
अमरलता-पीपल चिर से कथायजन
आश्रय अंतिम मेरा उनका वचन
मदिर मधुर हुई जीवनचुभन
आस उदास शीत वियोगतपन
धनिकों के निष्क रौप्य रतन
मेरा धन केवल पागल मन
निष्क्रय में दे दूं मैं जीवन
मिल जाए यदि बिकता प्रीतम
लगन संग आन जुड़ी जो लगन
सज गई धरती ठगती दुल्हन
आदिसत्य अखंडित कवि अधुनातन
कण-कण जीवन और शेषशयन
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२